"शब्दों का समाज, मंच पर महाकाव्यः पारा परसादीपुर का ऐतिहासिक कवि सम्मेलन

Jul 2, 2025 - 15:32
 0  66
"शब्दों का समाज, मंच पर महाकाव्यः पारा परसादीपुर का ऐतिहासिक कवि सम्मेलन

चंद्रशेखर प्रजापति

पहला/ सीतापुर। जिले के प्रतिष्ठित आदर्श जनता विद्यालय, पारा परसादीपुर, पहला सीतापुर में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एक ऐतिहासिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संध्या का प्रतीक बन गया, जिसमें विभिन्न जनपदों के कवियों ने समाज, संस्कृति, प्रेम, वीरता और समसामयिक चिंताओं को स्वर और शृंगार दिया। लखनऊ से पधारे सुप्रसिद्ध कवि संदीप ‘सृजल’ ने ग़ज़ल और आधुनिक कविता के माध्यम से संवेदनाओं की गहराइयों को छुआ। उनका शेर "ख्वाब ओखों में बहरता है ग़ज़ल, लिखता हूँ" सभागार को भीतर तक आंदोलित कर गया। मिश्रिख के प्रख्यात संचालक रोहित विश्वकर्मा 'मधुर' ने अपनी ओजस्वी वाणी से संचालन का भार उठाते हुए जब पंक्तियाँ सुनाईं –

“कभी त्रिदेव बन बालक स्वयं मनुहार जाते हैं,

यहाँ यमराज भी नारी के आगे हार जाते हैं।”

तो पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। अनिल यादव ‘अनिकेत’ (हरदोई) ने अंधकार पर करारा व्यंग्य करते हुए कहा – “हाय उजला माँगता, दीपक हाथ वरसार वसार। के हाथों बिक गई सूरज की सरकार तम के।” पिंकी अरविंद प्रजापति (सिधौली, सीतापुर) ने स्त्री-चेतना और सामाजिक यथार्थ की नई परिभाषा गढ़ते हुए कहा – “माँ बाप से बड़ा कोई भगवान नहीं।” शैलेश माही (बाराबंकी) की रचनाओं में सौंदर्य और यथार्थ का सुंदर संगम था। अंकित कुमार प्रजापति (महमूदाबाद) ने खेत-खलिहान और श्रम-संस्कृति का सजीव चित्रण करते हुए श्रोताओं को ग्रामीण जीवन की मिट्टी से जोड़ दिया – “जो अन्न से पेट भरै जग का और धूप में खेत में काम करत है...” अलोक आदर्श (सीतापुर) की ओजपूर्ण कविताओं ने आम जन और कृषक जीवन की संघर्षगाथा को मंच पर जीवंत किया।

इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री अजय कुमार यादव (जिला पंचायत सदस्य) रहे, जिन्होंने मंच से नई पीढ़ी को साहित्य और संस्कृति से जुड़ने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम के संयोजक श्री दिनेश कुमार भार्गव (प्रधान, पारा परसादीपुर) और संरक्षक श्री विजय कुमार यादव (प्रबंधक, आदर्श जनता विद्यालय) ने स्थानीय स्तर पर साहित्य को समर्थन देने की जो पहल की, वह सराहनीय रही। 

प्रधानाचार्य श्री अनिल कुमार वर्मा के नेतृत्व में आदर्श जनता विद्यालय परिवार तथा क्षेत्रीय इष्ट-मित्रों के सहयोग से यह आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। यह कवि सम्मेलन केवल काव्य-गोष्ठी नहीं बल्कि संवेदनाओं की साझा विरासत का उत्सव था। मंच पर गूंजती कविताएं, श्रोताओं की तालियाँ और साहित्य की महक से महकता वातावरण — सब कुछ इस बात का प्रमाण था कि ग्रामीण भारत में भी साहित्य की जड़ें गहरी हैं और उसकी शाखाएँ फलदार हैं।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow