कमलेश मौर्य मृदु के पुनर्जन्म पर साहित्यिक अनुष्ठान लखनऊ में प्रेरणा परिवार द्वारा आयोजित प्रथम आयोजन

चंद्रशेखर प्रजापति
लखनऊ। अखिल भारतीय साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था प्रेरणा परिवार के तत्वाधान में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया यह आयोजन साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु के साथ उनके ग्राम रामभारी, विसवां सीतापुर में घटित हुई दुर्घटना जिसमें उनकी धर्मपत्नी का निधन और ईश्वर की कृपा से कमलेश मौर्य मृदु को पुनर्जन्म की प्राप्ति हुई थी के अवसर पर संपन्न हुआ जिसका शुभारंभ मुख्य अतिथि राष्ट्रीय अध्यक्ष दिव्यांग कल्याण सेवा समिति एवं पूर्व सीमाकर उपायुक्त विष्णु कांत मिश्र, विशिष्ट अतिथि वाद्य बहादुर सिंह उपायुक्त राजस्व विभाग, के जी एम यू ट्रामा सेंटर के अधीक्षक डा अमिय अग्रवाल , भास्कराचार्य कोचिंग इंस्टीट्यूट के निदेशक जे पी वर्मा तथा अध्यक्षता कर रही वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती छाया त्यागी ने मां शारदे के चित्र पर माल्यार्पण कर किया ।मां शारदे की वन्दना मनोज अवस्थी शुकदेव ने की।
इस अवसर पर प्रेरणा परिवार संस्थापक विजय तन्हा ने साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु का माल्यार्पण एवं शाल्यापर्ण कर अभिनंदन किया एवं ईश्वर से उनकी लंबी उम्र एवं स्वस्थ जीवन की कामना की। मंच संचालन ख्यातिलब्ध गीतकार संजय सांवरा ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते डॉ छाया त्यागी ने कहा -
नगर बीथियां नगर कुंज और नगर आत्मा कहती है।
मेरे हृदय स्पंदन में उनकी छाया रहती है।
विशिष्ट अतिथि अमिय अग्रवाल ने कविता पाठ करते कहा -
जब लक्ष्य बड़ा हो जीवन में इम्तिहान बड़ा देना होता है।
जब खुली आंख देखो सपना दिन-रात नहीं सोने देता है।
वरिष्ठ हास्य कवि अशोक झंझटी ने कहा -
हमारे साथ हंसते हैं तो आंखें नम भी करते हैं।
ये सुख दुख दोस्त हैं मेरे बड़े दम खम से रहते हैं।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम ने कहा -
गुरुवर के निर्मल चरण करते हृदय प्रकाश।
श्रुतियों की वाणी सुना करते विमल विकास।।
डा. लक्ष्मी रस्तोगी ने कहा -
क्यों बोझ लगते हैं बुढ़ापे में वो झुके कमजोर कंधे,
जिनपर चढ़कर कभी तुम दुनिया देखा करते थे।
अमरनाथ ललित ने ग़ज़ल पढ़ी -
न जाने कितनी आंहे दफ्न होती एक सीने में,
ये शायर सिर्फ अपनी आंख के आंसू नहीं रोता।
लता श्रीवास्तव ने कहा -
फिर तुम मुझको याद आए देखो फिर से शाम ढली।
कैसे तुमको विसराएं देखो फिर से शाम ढली।
डा. ममता पंकज ने कहा -
मान भी क्षणिक है अपमान भी क्षणिक है।
किसे पता मोती कहां और कहां मणिक है।
जितेन्द्र मिश्र भास्कर ने कहा -
सही समय पर जो बोलेगा उसका नाम लिया जाएगा।
जो इतिहास बदल देगा अब उसको श्रेय दिया जाएगा।
सरिता कटियार सदाबहार ने कहा -
माया का फ़साना है जग में सबको फंसा के रखती है।
इक कदम जो निकले दलदल में सौ कदम गिरा के रखती है।
मनोज अवस्थी शुकदेव ने कहा -
राम राष्ट्र के आराधक को पुनर्जन्म की बहुत बधाई।
आशु कवित्व शक्ति साधक को पुनर्शजन्म की बहुत बधाई।
मंच संचालन करते संजय सांवरा ने कहा -
पखेरू पंख बिन उड़े कैसे, अधर्वगामी भला मुड़े कैसे।
ऐ हकीमो जरा बताना तो दिल जो टूटा हो फिर जुड़े कैसे।
महेश चन्द्र गुप्त ने कहा -
प्रीत हो राधिका जैसा, इसे उपासना कहिये।
अनुराग मीरा सी, उसे तो साधना कहिए।
समर्पण प्यार से ऊपर लबों की प्यास हो जाये,
ऐसे स्वार्थ सिद्धी को, केवल वासना कहिये।।
प्रेरणा परिवार संस्थापक विजय तन्हा ने कहा -
ईश्वर की इच्छा पर सदा, है चलता संसार।
किसे मिले जीवन यहां, किसे स्वर्ग का द्वार।।
मुकेश कुमार मिश्र ने कहा -
जैसा जिसका आचरण, वैसा ही सम्मान।
अनायास ऊपर नहीं, घर में रोशनदान।।
वकार काशिफ ने गजल गुनगुनाते कहा -
कोई रास्ते में मुझे मिल गया है।
उसी के साथ मेरा दिल गया है।
मनमोहन बाराकोटी ने कहा -
जो भी लेते हैं समझ, निज जीवन का सार।
नहीं फंसे उनकी कभी, नौकाएं मझधार।।
जयपुर से पधारी रानी तंवर ने कहा -
सीता घुट घुट मरती
लेकर साथ गई
माता उसकी धरती।
गीता देवी ने कहा -
त्याग के विन प्रीत होती नहीं।
डर किसी वीर की रीत होती नहीं।
रामराज भारती ने कहा -
ताँबा पीतल फूल गुम,चली फाइबर थाल।
रिश्ते सब बौने बनें, याद रही ससुराल।।
कशिश खान ने कहा -
हैं दर्द कई जिनकी दवा इश्क नहीं।
हर फर्द की किस्मत में लिखा इश्क नहीं।
गंगेश मिश्रा ने कहा -
जगत में घोर पीड़ा है बहुत ही कम सहा हमने।
किया उन्मुक्त नयनो को दिया आंसू वहा हमने।
बरेली से पधारी यशकिर्ति गंगवार ने कहा -
हैं बागों में बहारें तुम्हारे लिए।
प्रेम का गीत पावन तुम्हारे लिए।
इनके अतिरिक्त ललित जोशी, हरि प्रकाश अग्रवाल, रामराज भारती, विजय शर्मा, विष्णु कांत मिश्रा, राम तिलक मौर्य, योगेश चौहान, अतुल बजपेई, मयंक कनौजिया, शिल्पी मोर्या, विनोद कुमार वर्मा, सत्य कुमार वर्मा व गीता गंगवार आदि ने काव्य पाठ किया एवं अपने विचार रखे।
सभी कवियों का स्वागत सत्कार ललित जोशी ने किया एवं कार्यक्रम के समापन पर आगंतुकों का आभार प्रेरणा परिवार संस्थापक विजय तन्हा ने व्यक्त किया।
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